सूर्य नमस्कार की विधि और लाभ प्राचीन अभिवादन प्रथा का पालन करके आप अपने जीवन में आंतरिक शांति, संतुलन, और सफलता प्राप्त कर सकते हैं। सूर्य नमस्कार के विधि और लाभ आध्यात्मिक लाभों के बारें में और अधिक जननें ।
सूर्य नमस्कार की विधि और लाभ
संसार को दिखाई देने वाली सभी वस्तुओं का मूल एक आधार सूर्य ही है । सभी ग्रह और उपग्रह सूर्य की आकर्षण शक्ति के द्वारा ही अपने निश्चित आधार पर घूम रहे हैं । संसार में ऊर्जा का सबसे बड़ा स्रोत सूर्य ही है और इसके द्वारा ही संसार की गतिविधियों का संचालन होता है सूर्य से निकलने वाली ऊर्जा के कारण ही प्रकृति में परिवर्तन आता है इसलिए योग शास्त्रों में सूर्य नमस्कार आसन का वर्णन किया गया है । सूर्य नमस्कार आसन से मिलने वाले लाभों को विज्ञान भी मानता है । सूर्य नमस्कार आसन के अभ्यास से शरीर में लचीलापन आता है तथा विभिन्न प्रकार के रोगों में लाभ होती है । इसकी12 स्थितियां होती है । सभी स्थिति अपनी पहली स्थिति में आई कमी को दूर करती है । इस आसन में शरीर को विभिन्न रूपों में तानकर और छाती कोअदल - बदल कर संकुचित व विस्तृत कर सांस क्रिया की जाती है । इससे शरीर की मांसपेशियों, जोड़ो और रीढ़ की हड्डियों में लचीलापन आने के साथ आंतरिक अंगों की मालिश भी होती है । सूर्य नमस्कार आसन की 12 स्थितियों को क्रमबद्ध रूप से करें । सूर्य नमस्कार आसन के साथ कुछ मंत्रों को पढ़ने के लिए भी बताया गया है जिससे इसका लाभ बढ़ जाता है, सूर्य नमस्कार आसन का अभ्यास ऐसे स्थिति पर करें । जहां पूरे शरीर पर सूर्य की रोशनी पर सके तभी इस आसन का अभ्यास सूर्य उदय के 1 से 2 घंटे के अंदर तथा सूर्य की तरफ मुंह करके करें ।
सूर्य नमस्कार आसन की 12 स्थितियाँ
सूर्य नमस्कार आसन के लिए पहले सीधे खड़े हो कर पीठ, गर्दन और सिर को एक सीध में रखें ।
पहली स्थिति
सूर्य नमस्कार आसन के लिए पहले सीधे खड़े हो जाए फिर पीठ, गर्दन और सिर को एक सीध में रखें । दोनों पैरों को मिलाकर सावधान की स्थिति बनाएं । दोनों हाथों को जोड़कर छाती से सटाकर नमस्कार या प्रार्थना की मुद्रा बना ले । अब पेट को अंदर खींचकर छाती को चौड़ा करें । इस स्थिति में आने के बाद अंदर की वायु को धीरे-धीरे बाहर निकाल दे और कुछ क्षण इस स्थिति में खड़े रहे । इसके बाद स्थिति दूसरा का अभ्यास करें । अब सांस अंदर खींचते हुए दोनों हाथों को कंधों की सीध में ऊपर की ओर उठाएं और जितना पीछे ले जाना संभव हो ले जाएं ।
दूसरा स्थिति
अब सांस अंदर खींचते हुए दोनों हाथों को कंधों की सिध में ऊपर उठाएं और जितना पीछे ले जाना सम्भव हो ले जाएं । फिर सांस बाहर छोड़ते और अंदर खींचते हुए सीधे खड़े हो जाएं । ध्यान रखें की कमर व घूटना न मुड़े । इसके बाद तीसरा स्थिति का अभ्यास करें ।
तीसरा स्थिति
सांस को बाहर निकलते हुए शरीर को धीरे-धीरे सामने की ओर झुकते हुए हाथों की उंगलियों से पैर के अंगूठे को छुए । इस क्रिया में हथेलियों और पैर की एडीयों को बराबर स्थिति में जमीन पर सटाने और धीरे-धीरे अभ्यास करते हुए । नाक और माथे को घुटनों से लगाने का भी अभ्यास करना चाहिए । यह क्रिया करते समय घुटने सीधे करके रखें । इस क्रिया को करते हुए अंदर भरी हुई वायु को बाहर निकाल दे । इस प्रकार सूर्य नमस्कार के साथ प्राणायाम की क्रिया भी हो जाती है । अब चौथी स्थिति का अभ्यास करें । अब ध्यान रखें आसन की दूसरी क्रिया में थोड़ी कठिनाई हो सकती है । अब नाक या सिर को घुटनों में सटाने का क्रिया अपनी क्षमता का अनुसार ही करें । और धीरे-धीरे अभ्यास करते हुए क्रिया को पूरा करने की कोशिश करें । अब सांस अंदर की ओर खींचते हुए दोनों हाथ और बाएं पैर को वैसे ही रखें । तथा दाएं पैर को पीछे की ओर ले जाएं । और घुटने को जमीन से सटाकर रखना चाहिए ।
चौथा स्थिति
जब सांस अंदर खींचते हुए अपना से दोनों हाथ और बाएं पैर को वैसे ही रखें तथा दाएं पैर को पीछे ले जाएं । और घुटने को जमीन से सटाकर रखें । बाएं पैर को पीछे ले जाएं और घुटने को जमीन से सटाकर रखें । बाएं पैर को दोनों हाथों के बीच में रखें । चेहरे को ऊपर की ओर करके रखें तथा सांस को रोक कर ही कुछ देर तक इस स्थिति में रहे । फिर सांस छोड़ते हुए पैर की स्थिति बदल कर दाएं पैर को दोनों हाथों के बीच में रखे और बाएं पैर को पीछे की और करके रखे । अब सांस को रोक कर ही इस स्थिति में कुछ देर तक रहे । फिर सोच को छोड़ें। इसके बाद पांचवी स्थिति का अभ्यास करें । अब सांस को अंदर खींचकर और रोक कर दोनों पैरों को पीछे की ओर ले जाए । इसमें शरीर को दोनों हाथ व पंजों पर स्थिर करें ।
पाँचवा स्थिति
अब सांस को अंदर खींच कर और रोक कर दोनों पैरों को पीछे की ओर ले जाएं । इसमें शरीर को दोनों हाथों व पंजों पर स्थिर करें । इस स्थिति में सिर, पीठ व पैरों को एक सिध में रखें । अब सॉस बाहर की और छोड़ें इसके बाद छठी स्थिति का अभ्यास करें । अब सांस को अंदर ही रोक कर रखे तथा हाथ, एड़ियों व पंजों को अपने स्थान पर ही रखें । अब धीरे-धीरे शरीर को नीचे झुकते हुए छाती और मस्तक को जमीन पर स्पर्श कराना चाहिए ।
छठी स्थिति
अब सांस को अंदर ही रोक कर रखें तथा हाथ, एड़ियों व पंजों को अपने स्थान पर ही रखें । अब धीरे-धीरे शरीर को नीचे झुकाते हुए छाती और मस्तक को जमीन से स्पर्श करना चाहिए और अंदर रुकी हुई वायु को बाहर निकाल दे । इसके बाद सातवीं स्थिति का अभ्यास करें । फिर सांस अंदर खींचते हुए वायु को अंदर भर ले और सांस को अंदर ही रोक कर छाती और सिर को ऊपर उठकर हल्के से पीछे की ओर ले जाएं ।
सातवीं स्थिति
फिर सांस अंदर खींचते हुए वायु को अंदर भर लें और सांस को अंदर ही रोककर छाती और सिर को ऊपर उठाकर हल्के से पीछे की ओर ले जांए और ऊपर देखने की कोशिश करें । इस क्रिया में सांस रुकी हुई ही रहनी चाहिए । इसके बाद आठवीं स्थिति का अभ्यास करें । अब सांस को बाहर छोड़ने हुए आसान में नितम्ब (हिप्स) और पीठ को ऊपर की ओर ले जाकर छाती और सिर को झुकते हुए दोनों के बीच में ले आएं ।
आठवीं स्थिति
अब सांस को बाहर छोड़ते हुए आसन में नितम्ब (हिप्स) और पीठ को ऊपर की ओर ले जाकर छाती और सिर को झुकते हुए दोनों हाथों के बीच में ले आएं । आपके दोनों पैर नितंबों की सीध में होने चाहिए । थोड़ी को छाती से चुने की कोशिश करें और पेट को जितना संभव हो अंदर खींच कर रखें । यह क्रिया करते समय सांस को बाहर निकाल दें । यह भी एक प्रकार का प्राणायाम ही है । इसके बाद नौवीं स्थिति का अभ्यास करें । इस आसन को करते समय पुनः वायु को अंदर खींचे और शरीर को तीसरी स्थिति में ले जाएं । इस स्थिति में आने के बाद सांस को रोक कर रखें ।
नौवीं स्थिति
इस आसन को करते समय पुनः वायु को अंदर खींची और शरीर को तीसरी स्थिति में ले जाएं । इस स्थिति में आने के बाद सांस को रोककर रखें । अब दोनों पैरों को दोनों हाथों के बीच में ले जाएं और सिर को आकाश की ओर करके रखें । इसके बाद दसवीं स्थिति का अभ्यास करें । इसमें सांस को बाहर छोड़ते हुए अपने शरीर को दूसरी स्थिति की तरह बनाएं । आपकी दोनों हथेलियां दोनों पैरों के अंगूठे को छूती हुई होनी चाहिए ।
दसवीं स्थिति
इसमें सांस को बाहर छोड़ते हुए अपने शरीर को दूसरी स्थिति की तरह बनाएं । आपकी दोनों हथेलियां दोनों पैरों के अंगूठे को छुती हुई होनी चाहिए सिर को घुटनों से सटाकर रखें और अंदर की वायु को बाहर निकाल दे । इसके बाद ग्यारवीं स्थिति का अभ्यास करें । अब पुनः फेफड़ों में वायु को भरकर पहली स्थिति में सीधे खड़े हो जाए । इस स्थिति में दोनों पैरों को मिलाकर रखें ।
ग्यारवीं स्थिति
अब पुनः फेफडें में वायु को भरकर पहली स्थिति में सीधे खड़े हो जाएं । इस स्थिति में दोनों पैरों को मिलाकर रखें और पेट को अंदर खींचकर छाती को बाहर निकाल ले । इस तरह इस आसन का कई बार अभ्यास कर सकते हैं । अब सांस बाहर छोड़ते हुए पहले वाली स्थिति की तरह नमस्कार मुद्रा में आ जाए । शरीर को सीधाहुआ तानकर रखें ।
बारहवीं स्थिति
अब सांस बाहर छोड़ते हुए पहले वाली स्थिति की तरह नमस्कार मुद्रा में आ जाएं । शरीर को सीधा वतानकर रखें । बाद दोनों हाथों को दोनों बगल में रखे और पूरे शरीर को आराम दे। इस प्रकार इन 12 क्रियो को करने से सूर्य नमस्कार आसन पूर्ण होता है ।
सूर्य नमस्कार की सावधानियां
जब सूर्य नमस्कार आसन का अभ्यास हर्निया रोगी को नहीं करना चाहिए । ध्यान - सूर्य नमस्कार आसन का अभ्यास करते हुए अपने ध्यान को विशुद्ध चक्र पर लगे ।
जब सूर्य नमस्कार आसन का अभ्यास हर्निया रोगी को नहीं करना चाहिए । ध्यान - सूर्य नमस्कार आसन का अभ्यास करते हुए अपने ध्यान को विशुद्ध चक्र पर लगे ।
सूर्य नमस्कार जब आसन की 10 स्थितियों से अलग-अलग लाभ प्राप्त होती हैं ।
- यह स्थिति पेट, पीठ, छाती, पर और भुजाओं के लिए लाभकारी होती है ।
- दूसरी स्थिति में जब से हथेलियों, हाथों, गर्दन, पीठ, पेट, आंतों, नितम्ब, पिण्डलियों, घुटनों और पैरों को लाभ मिलता है ।
- तीसरी स्थिति में पैरों व हाथों की तलहथियों, छाती, पीठ और गर्दन को लाभ पहुंचना है ।
- चौथी स्थिति में जब हाथ और पैरों के पंजों और गर्दन पर असर पड़ता है ।
- पांचवी स्थिति में बड़ों और घुटनों पर बाल पड़ता है और वह शक्तिशाली बनते हैं ।
- छठी स्थिति में जब भुजाओं और गर्दन, पेट, पीठ के स्नायुओं और घुटनों को बल मिलता है ।
- सातवीं स्थिति में हाथों, पैरों के पंजों, नितंबों (हिप्स) भुजाओं पिण्डलियों और कमर पर दबाव पड़ता है ।
- आठवीं स्थिति में जब हथेलियों , हाथों, गर्दन, पीठ, पेट, आंतों, नितम्ब (हिप्स), पिण्डलियों, घुटनों, पैरों पर बाल पड़ता है ।
- नौवीं स्थिति में हाथों पंजो, भुजाओं, घुटनों, गर्दन व पीठ पर बाल पड़ता है ।
- दसवीं स्थिति में पीठ, छाती और भुजाओं पर दबाव पड़ता है तथा उसे स्थान का स्नायु मंडल में खिंचाव होता है । परिणाम स्वरुप वह अंग शक्तिशाली एवं मजबूत बनता है ।
जब सूर्य नमस्कार के साथ पढ़े जाने वाले मंत्र है –
जब सूर्य नमस्कार आसन में विभिन्न मित्रों को पढ़ने का नियम बताया गया है । इन मित्रों को विभिन्न स्थितियों में पढ़ने से अत्यंत लाभ मिलता है । सूर्य नमस्कार का अभ्यास क्रमबंध रूप से करते हुए और उनके साथ मंत्र का उच्चारण करते हुए अभ्यास करना चाहिए -
जब सूर्य नमस्कार के साथ पढ़े जाने वाले मंत्र है –
जब सूर्य नमस्कार आसन में विभिन्न मित्रों को पढ़ने का नियम बताया गया है । इन मित्रों को विभिन्न स्थितियों में पढ़ने से अत्यंत लाभ मिलता है । सूर्य नमस्कार का अभ्यास क्रमबंध रूप से करते हुए और उनके साथ मंत्र का उच्चारण करते हुए अभ्यास करना चाहिए -
- ऊँ ह्राँ मित्राय नम:।
- ऊँ ह्राँ रवये नम:।
- ऊँ ह्रूँ सूर्याय नम:।
- ऊँ ह्रैं मानवे नम:।
- ऊँ ह्रौं खगाय नम:।
- ऊँ ह्र: पूष्पो नम:।
- ऊँ ह्राँ हिरण्यगर्भाय नम:।
- ऊँ ह्री मरीचये नम:।
- ऊँ ह्रौं अर्काय नम:।
- ऊँ ह्रूँ आदित्याय नम:।
- ऊँ ह्र: भास्कराय नम:।
- ऊँ ह्रैं सविणे नम:।
- ऊँ ह्राँ ह्री मित्ररविभ्याम्:।
- ऊँ ह्रू हें सूर्याभानुभ्याम नम:।
- ऊँ ह्रौं ह्र खगपूषभ्याम् नम:।
- ऊँ ह्रें ह्रीं हिरण्यगर्भमरीचियाम् नम:।
- ऊँ ह्रू ह्रू आदित्यसविती्याम्:।
- ऊँ ह्रौं ह्रः अर्कभास्कराभ्याम् नम:।
- ऊँ ह्राँ ह्रां ह्रूँ ह्रैं ॐ मित्ररवि सूर्यभानुष्यो नम:।
- ऊँ ह्र ह्रें ह्रौं ह्र: आदित्यसवित्रर्कफारकरेभ्यो नम:।
- ऊँ ह्रों ह्रः ह्रां ह्रौं ॐ खगपूशहिरिण्यगर्भ मरीचिभ्यो नम:।
- ऊँ ह्राँ ह्रों ह्रं ह्रै ह्रौं ह्रः, ऊँ ह्राँ ह्रीं ह्रू ह्रैं ह्रीं ह्रः ॐ मित्र रविसूर्य भानुखगपूषहिरण्यग भमरीच्यादिन्यासवित्रक भास्करूभ्यो नम:।
- इन मंत्रों को दो और बार पढ़ें।
- ऊँ श्री सवित्रेन सूर्यनारायण नम:।
आसन के अभ्यास से रोग में लाभ
जब सूर्य नमस्कार आसन का अभ्यास करने से शरीर स्वस्थ व रोग मुक्त रहता है । इससे चेहरे पर चमक व रौनक रहती है । यह स्नायुमंडल को शक्तिशाली बनाता है और ऊर्जा केंद्र को ऊर्जावान बनाता है । इसके अभ्यास से मानसिक शक्ति व बुद्धि का विकास होता है तथा स्मरण शक्ति बढ़ती है । इस आसन को करने से शरीर में लचीलापन आता है तथा यह अन्यआसनों के अभ्यास में लाभकारी होता है । इससे सांस से संबंधित रोग, मोटापा रिंकी हड्डी और जोड़ों का दर्द दूर होता है । जब इस आसन को करने के आमाशय, जिगर, गुर्दे तथा छोटी व बड़ी आंतों को बल मिलता है जब और इसके अभ्यास से कब्ज बवासीर आदि रोग समाप्त होते हैं ।
FAQ:
सूर्य नमस्कार की विधि क्या है ?
यह योग अभ्यास सूर्य की प्राकृतिक ऊर्जा को अपने शरीर, मन, और आत्मा में आवश्यक सुधार करने का एक तरीका माना जाता है सूर्य नमस्कार को सुबह सूर्य के उदय के समय करना अधिक प्रशंस्य होता है।
सूर्य नमस्कार का लाभ क्या है ?
यह शारीरिक, मानसिक, और आध्यात्मिक रूप से फायदेमंद होता है।
सूर्य नमस्कार से कौन-कौन से रोग ठीक हो सकते हैं ?
शारीरिक स्वास्थ्य को सुधारने में मदद करती है, लेकिन यह योग भीम किसी विशेष रोग का इलाज नहीं होता है, बल्कि स्वास्थ्य को बनाए रखने और रोगों से बचाव के लिए मददगार होता है।
क्या सूर्य नमस्कार से ताकत बढ़ती है ?
सूर्य नमस्कार एक पावरफुल योग प्रक्रिया है, जो आपके सभी मांसपेशियों को स्ट्रेट करने और मजबूत करने में मदद करता है, यह आपके कंधे, पीठ, पेट, बाहरी सूली, गुदा, जंग, और जंग की पिचकन को सुधार सकता है।
Qक्या नहाने से पहले सूर्य नमस्कार कर सकते हैं ?
सूर्य नमस्कार एक प्रामाणिक योग प्रथम है जो आपका दिन की शुरुआत में शांति और स्वास्थ्य के लिए किया जाता है, यह योगाभ्यास आपके दिमाग और शारीरिक सकारात्मक रूप से प्रेरित करता है सूर्य की पूजा का भी रूप हो सकता है।
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