Isha kariya मानसिक तनाव को कम करें, आत्म जागरूकता बढ़ाएं, और शांति प्राप्त करें, जीवन को सुख में और संतुलित बना सकते हैं।
योग्य वैज्ञानिक के साम्यतित ज्ञान पर आधारित "ईशा क्रिया" एक निशुल्क निर्देशित ध्यान क्रिया है। इस क्रिया के निर्देशों वाला या इसके निर्देश आपनी से इंटरनेट पर पढ़े जा सकते हैं या इसी दुनिया भर में निशुल्क भेंट की जाने वाली वर्कशॉप में लिखा जा सकता है इस क्रिया में हर उसे व्यक्ति के जीवन को रूपांतरित करने की क्षमता है जो दिन में सिर्फ 12 मिनट का निवेश करने को तैयार हो।"ईशा" यानी संतुष्ट का स्रोत, "क्रिया" यानी आंतरिक कार्य" इस क्रिया का उद्देश्य है अपने अस्तित्व के स्रोत से संपर्क बनाने में आपकी सहायता करना, ताकि आप अपना जीवन अपनी इच्छा और सोच के अनुसार बना सके। हर दिन ऐसा क्रिया का अभ्यास जीवन में स्वास्थ्य, संक्रियता, शांति और खुशहाली लाती है। या आज के भागदौड़ वाली जीवन के साथ तालमेल बिठाने के लिए एक शक्तिशाली साधन है। आजकल ज्यादातर सोचते हैं कि "योग" यानी शरीर को मरोड़ कर असंभव आसनों में ढालना। योग का भौतिक रूप इस बहू आयामी विज्ञान का केवल एक आयाम है। योग मां और शरीर को उनकी उच्चतम क्षमताओं तक ले जाने और जीवन को संपूर्ण रहता से जीने की तारी तकनीक है। हर व्यक्ति तक "आध्यात्म की एक बूंद" पहुंचाई जाए। ऐसा क्रिया निर्देशित ध्यान क्रिया के द्वारा आध्यात्मिक भीम की ऐसी संभावना जो केवल योगो और साधुओं को उपलब्ध थी, अब हर मनुष्य को अपने घर के सुविधाजनक माहौल में भेंट की जा रही है
ईशा क्रिया के फायदे
सबसे पहले तो ध्यान करने की जरूरत ही क्या है ? जीवन की प्रक्रिया शुरू करना आपका सचेतक चुनाव नहीं था, यह सब आपके साथ हो गया। जब आप पैदा हुए, आपका शरीर कितना छोटा था, और अब यह बड़ा हों गया है। तो बेशक इस शरीर को अपने इकट्ठा किया है। यह एक संग्रह है, जिसे आप मेरा शरीर कहते हैं वह भोजन का एक संग्रह है इसी तरह जैसे आप "मेरा मन" कहते हैं वह जानकारी का एक संग्रह है।
- आप जिस भी चीज को इकट्ठा करते हैं, वह "आपकी" हो सकती है लेकिन वह कभी भी "आप" नहीं हो सकते। आपने उसे "इकट्ठा किया" है – इसका साफ अर्थ है कि आपने उसे कहीं और से जमा किया है। आज आप शायद 70 किलो का शरीर जमा कर ले, लेकिन आप इसे 60 किलो का बनाने का फैसला कर सकते हैं। आप उसे 10 किलो का ढूंढने नहीं निकलते, क्योंकि वह तो सिर्फ एक संग्रह था। जैसे ही आपने उसे अलग कर दिया, वो गायब हो गया। इसी तरह, आपका मन जानकारी का एक संग्रह है।
- जैसे ही आप अपने पहचान किसी ऐसी चीज से बना लेते हैं जो आप नहीं है, आपका बोध, यानी आपकी देखने या अनुभव करने की क्षमता विकृत हो जाती है। यह शरीर जैसे आपने बाहर से इकट्ठा किया है, जैसे ही आप इसे "स्वयं" के रूप में अनुभव करने लगते हैं, आप जीवन का सिर्फ उसे तरह से अनुभव करेंगे जैसा आपका जीवित रहने के लिए जरूरी है, वैसा नहीं, जैसा वह असल में है।
- जब आप इस इंसान के रूप में यहां आते हैं, तो जीवन यापन काफी महत्वपूर्ण है, लेकिन यह काफी नहीं है। अगर आप इस ग्रह के किसी दूसरे प्राणी की तरह यहां आए होते, तो अगर पेट भरा है, तू जीवन में कोई भी समस्या नहीं होती। लेकिन जब आप एक इंसान के रूप में यहां आते हैं, जिंदगी सिर्फ जीवन यापन ताकि सीमित नहीं रहती। दरअसल, एक इंसान के लिए, जिंदगी सिर्फ तभी शुरू होती है जब जीवन यापन ठीक से होने लगता है।
- ध्यान आपको एक ऐसा अनुभव देता है, एक ऐसी आंतरिक अवस्था, जहां जो "आप" हैं और जो "आपका" है, यह अलग-अलग हो सकते हैं एक दूरी आ जाती है। जो "आप" हैं और जिसे अपने "इकट्ठा" किया है – इसके बीच थोड़ी दूरी आ जाती है। फिलहाल हम ऐसे ही ध्यान मान सकते हैं।
- इसे करने का क्या फायदा है ? यह बोध करने की क्षमता में पूरी स्पष्टता लता है। आप जीवन को वैसे देखते हैं – इसमें कोई भी विकृत नहीं होती। अभी इस दुनिया से होकर गुजरने की आपकी क्षमता केवल इस हद तक होती है, जिहाद तक आप स्पष्टता से देख नहीं पा रहा लेकिन मुझ में आत्मविश्वास है और मैं दुनिया से होकर गुजरने की कोशिश करता हूं, तो मैं एक अनाड़ी मूर्ख बनकर रह जाऊंगा। जब भी दिशा मौजूद नहीं होता, तब लोग खुद में आत्मविश्वास बढ़ाकर उसे पूरा करने की कोशिश करते हैं। लोग स्पष्टता की कमी को दूसरी चीजों से भरने की कोशिश कर रहे हैं। स्पष्टता का स्थान कोई और चीज नहीं ले सकती।
- जब आपको यह बात समझ आ जाती है तो आप स्वाभाविक रूप से ध्यान सील बन जाते हैं, आप हर चीज को साफ करके जीवन को वैसा देखना चाहते हैं जैसा वह है, क्योंकि आप जीवन से होकर गुजरना चाहते हैं कम से कम टकराव के साथ, बिना किसी भी चीज से ठोकर खाए।
सांसों पर ध्यान लगाने के फायदे
सॉस वह धागा है, जो आपके शरीर से बांधता है अगर मैं आपकी सोच छीन लूं तो आप और आपका शरीर अलग हो जाएगा। यह सांस ही है जिसने आपको शरीर से बंधा हुआ है। जिसे आप अपना शरीर कहते हैं और जिसे आप "मैं" कहता हूं – यह दोनों चीज सांस से बंधी हुई है और यह सोच आपके कई पहलुओं को तय करती है।
- आप विचार और भावना के जिन भी विभिन्नता स्तरों से गुजरते हैं, उन स्टारों के हिसाब से आपकी सांस अलग-अलग तरह के पैटर्न लेती है। अगर आप गुस्से में है तो आप एक तरह से सांस लेते हैं। आप शांत हैं आप दूसरे तरीके से सांस लेते हैं। आप खुश हैं आप दूसरे तरीके से सांस लेते हैं। आप दुखी है आप दूसरी तरीके से सांस लेते हैं क्या आपने इस पर गौर किया है।
- इसका ठीक उल्टा प्राणायाम और क्रिया का विज्ञान है एक विशेष तरीके से जागरूकता के साथ सांस लेने से आपके सोने जीवन को समझने और अनुभव करने का तरीका बदल सकता है।
- इस सॉस को शरीर और मां के साथ दूसरे काम करने के लिए एक साधन के रूप में कई तरह से इस्तेमाल किया जा सकता है। आप देखेंगे कि ईशा क्रिया के साथ हम सॉस की एक सरल प्रक्रिया का उपयोग कर रहे हैं, पर यह क्रिया सांसों में नहीं है। स्वास्थ्य सिर्फ एक साधन है। सॉस बस एक शुरुआती चीज है, पर इस क्रिया में जो होता है, वह सांसों से परे है।
- आप जिस तरह से सांस लेते हैं, आप वैसा ही सोचते हैं। आप जिस तरह से सोते हैं, वैसे ही आप सांस लेते हैं, आपका पूरा जीवन आपका पूरा अचेतन मन आपकी सांसों में लिखा है, अगर आप सिर्फ अपनी सांस को पढ़ पाए तो आपका अतीत वर्तमान और भविष्य कहां लिखा हुआ है, आपकी सांस लेने के तरीके में।
- जब आप यह जान जाते हैं, तो जीवन बहुत अलग हो जाता है, इस अनुभव के स्तर पर जानने की जरूरत है, यह ऐसा कुछ नहीं है, जिसकी आप वाक्य कर सकते हैं अगर आप केवल यहां बैठे रहने का आनंद, जान जाए यहां बस बैठने में सक्षम होने का आनंद, ना कुछ सोचना, ना कुछ करना बस यहां बैठता बस जीवन होना तो जीवन बहुत अलग होगा।
- एक तरह से इसका यह मतलब है, कि आप इसके वैज्ञानिक प्रमाण मौजूद है, कि शराब की एक बूंद पिए बिना कोई दूसरी चीज लिए आप बस यहां बैठ सकते हैं, और खुद से नशे में हो सकते हैं, कोई हैंगओवर भी नहीं होगा। अगर आप एक तरीके से जागरूक है, तो आप सिस्टम को इस तरह से सक्रिय कर सकते हैं कि अगर आप यहां बैठते हैं, तो बैठना ही एक बहुत बड़ा आनंद होगा जब बस बैठना और सांस लेना इतना बड़ा आनंद हो तो आप बहुत ही मिलनसार लचीले और आदत बन जाएगा – क्योंकि हर समय आप अपने भीतर एक शानदार स्थिति में होंगे मां पहले से बहुत ज्यादा तेज हो जाएगा।
पहला चरण
- आराम से धीरे-धीरे सांस ली और छोड़ें।
- हर बार सॉस लेते समय अपने मन में खुद में कहीं मैं शेयर नहीं हूं इस विचार में जितना समय लगता है सॉस अंदर लेने में भी उतना ही समय लगना चाहिए।
- हर बार सांस छोड़ते समय अपने मन में खुद में कहीं मैं मान भी नहीं हूं, इस विचार में जितना समय लगता है सॉस बाहर छोड़ने में भी उतना ही समय लगना चाहिए।
- इसे 7 से 11 मिनट तक दोहराएं।
दूसरा चरण
- "आ" श्रद्धा को लंबा उच्चारण करें, इसका उच्चारण सात बार करें हर उच्चारण में पूरी तरह से सॉस बाहर छोड़ते हुए।
- यह आवाज नाभि के ठीक नीचे से आनी चाहिए।
- यह जरूरी नहीं है कि आप इसका उच्चारण बहुत ऊंची आवाज में करें, लेकिन आवाज इतनी अच्छी हो कि आप इसका कंपन महसूस कर सके।
तीसरा चरण
- 5 से 6 मिनट के लिए जरा सा ऊपर उठे चेहरे के साथ बैठे, और अपनी भौहों के बीच एक हल्का सा ध्यान बनाए रखें।
- इस अभ्यास से कुल 12 से 18 मिनट के बीच समय लगेगा। अगर आप चाहे तो ज्यादा देर तक बैठ सकते हैं।
कृपया ध्यान दें
- जब आप इस क्रिया के लिए बैठे हो, तब शरीर और मां की गतिविधि पर ध्यान ना दें, आपके शरीर और आपके मन में जो भी चल रहा है, उसे बस एंड देख कर दे और बस यूं ही बैठे रहे। बीच में कोई ब्रेक ना ले, क्योंकि इससे अभ्यास के दौरान हो रही ऊर्जा पुनर गणना की क्रियाएं में रुकावट आएगी
- क्रिया से सबसे ज्यादा लाभ प्राप्त करने के लिए हर बार इसे कम से कम 12 मिनट के लिए करें।
- इसे 48 दिनों तक दिन में दो बार करें (48 दिनों की अवधि एक पूरा मंडल या चक्र मानी जाती है) और उसके बाद दिन में काम से कम एक बार करें।
- इस क्रिया या अभ्यास 12 वर्ष से ज्यादा की उम्र का कोई भी व्यक्ति कर सकता है और इसके फायदे का आनंद उठा सकता है। बिना कोई बदलाव किया केवल निर्देशों का पालन करें। यह एक सरल और बहुत शक्तिशाली क्रिया है।
- आप खुद को दिन में किसी भी समय या याद दिला सकते हैं कि "मैं" शेयर नहीं हूं। मैं मान भी नहीं हूं।
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FAQ:
ईशा क्रिया करने के लिए सही समय क्या है ?
आपके लिए जो भी समय सुविधाजनक हो, आप तब इसे कर सकते हैं, लेकिन क्रिया आधी रात को क्रिया करने से परहेज करें।
मैं दिन में कितनी बार ईशा क्रिया का अभ्यास कर सकता हूं ?
दिन में दो बार करना उत्तम होगा। एक बार सुबह और एक बार शाम को कर सकते हैं। खली की अगर आपके पास समय है, और आप क्रिया को ज्यादा बार करना चाहते हैं, तो आप कर सकते हैं।
हमें यह ध्यान 48 दिनों तक क्यों करना चाहिए ?
48 दिन की अवधि को आमतौर पर एक मंडल माना जाता है। आपका शरीर 48 दिनों में एक तरह के चक्र से होकर गुजरता है। उदाहरण के लिए इस वजह से आयुर्वेद में आमतौर पर दवाइयां 48 दिनों के लिए दी जाती है। उसे दवा को आपके शरीर का एक हिस्सा बनने में उतना समय लगेगा। ईशा क्रिया के बारे में भी यही सच है। इसलिए यह महत्वपूर्ण है कि आप इतने दिनों तक बिना किसी ब्रेक के लगातार ये अभ्यास करें।
मुझे यह ध्यान कहां करना चाहिए ?
यह ध्यान आप कहीं भी कर सकते हैं केवल इस बात का ख्याल रखें की क्रिया के दौरान आपको शारीरिक रूप से कोई रूप से कोई रुकावट ना हो।
इस क्रिया का अभ्यास करने के लिए कम से कम उम्र कितनी होनी चाहिए ?
12 वर्ष से ज्यादा उम्र का कोई भी व्यक्ति इस क्रिया का अभ्यास कर सकता है।
ईशा क्रिया करने के लिए सही समय क्या है ?
आपके लिए जो भी समय सुविधाजनक हो, आप तब इसे कर सकते हैं, लेकिन क्रिया आधी रात को क्रिया करने से परहेज करें।
मैं दिन में कितनी बार ईशा क्रिया का अभ्यास कर सकता हूं ?
दिन में दो बार करना उत्तम होगा। एक बार सुबह और एक बार शाम को कर सकते हैं। खली की अगर आपके पास समय है, और आप क्रिया को ज्यादा बार करना चाहते हैं, तो आप कर सकते हैं।
हमें यह ध्यान 48 दिनों तक क्यों करना चाहिए ?
48 दिन की अवधि को आमतौर पर एक मंडल माना जाता है। आपका शरीर 48 दिनों में एक तरह के चक्र से होकर गुजरता है। उदाहरण के लिए इस वजह से आयुर्वेद में आमतौर पर दवाइयां 48 दिनों के लिए दी जाती है। उसे दवा को आपके शरीर का एक हिस्सा बनने में उतना समय लगेगा। ईशा क्रिया के बारे में भी यही सच है। इसलिए यह महत्वपूर्ण है कि आप इतने दिनों तक बिना किसी ब्रेक के लगातार ये अभ्यास करें।
मुझे यह ध्यान कहां करना चाहिए ?
यह ध्यान आप कहीं भी कर सकते हैं केवल इस बात का ख्याल रखें की क्रिया के दौरान आपको शारीरिक रूप से कोई रूप से कोई रुकावट ना हो।
इस क्रिया का अभ्यास करने के लिए कम से कम उम्र कितनी होनी चाहिए ?
12 वर्ष से ज्यादा उम्र का कोई भी व्यक्ति इस क्रिया का अभ्यास कर सकता है।
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